March 28, 2024

पांच साल बाद भी इसरो की कर रहा कमाई

 

आखरीआंख
अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में भारत का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख देने वाला मंगलयान लाल ग्रह का अध्ययन करने के लिए छह महीने के मिशन पर भेजा गया था, लेकिन यह पांच साल बाद भी काम कर रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के वैज्ञानिकों को लगातार मंगल ग्रह की तस्वीरें तथा डेटा भेज रहा है। पांच नवंबर, 2013 को मंगल यात्रा पर भेजे गए इस मंगलयान ने 24 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंचकर इतिहास रच दिया था। इसके साथ ही भारत अपने पहले प्रयास में ही मंगल पर पहुंच जाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया था। महज 450 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुआ यान 24 सितंबर, 2014 से लाल ग्रह का लगातार चक्कर लगा रहा है। इस दौरान इसने मंगल की सतह, वहां की घाटियों, पर्वतों, बादलों और वहां उठने वाले धूल भरे तूफानों की शानदार तस्वीरें तथा डेटा मुहैया कराया है। मंगलयान लगभग तीन दिन में मंगल की कक्षा का एक चक्कर पूरा करता है।
यह भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का पहला ऐसा मिशन है, जिस पर अध्ययन करने के लिए देश के वैज्ञानिक समुदाय के बीच 32 रिसर्च टीमें बनीं। अब तक 23 से यादा लेख और रिसर्च पेपर प्रकाशित किए गए। अब तक मंगलयान ने मंगल ग्रह की 1000 से यादा तस्वीरें भेजी हैं, साथ ही 5 साल में अब तक मंगलयान से इसरो के डाटा सेंटर को 5 टीबी से यादा डाटा मिल चुका है, जिसका उपयोग देशभर के वैज्ञानिक मंगल के अध्ययन में कर रहे हैं। यह दुनिया का सबसे सस्ता मंगल मिशन था। मंगलयान अब भी मंगल ग्रह के चारों तरफ अंडाकार कक्षा में चक्कर लगा रहा है। इसकी मंगल ग्रह से सबसे नजदीकी दूरी (पेरीजी) 421.7 किमी और सबसे अधिक दूरी (एपोजी) 76,993 किमी है। पांच साल से अकेले मंगल ग्रह की कक्षा में काम करने के बावजूद मॉम थका नहीं है।
पूर्व इसरो प्रमुख ए.एस. किरण कुमार के अनुसार इस मिशन का महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह पता लगाना रहा कि कैसे मंगल ग्रह पर धूल भरी आंधियां सैकड़ों किलोमीटर तक चल सकती हैं। अंतरिक्ष यान का जीवनकाल ग्रह की परिक्रमा करने के लिए आवश्यक ईंधन की उपलब्धता पर निर्भर करता है। मॉम के मामले में वैज्ञानिकों का कहना है कि उसके पास कुछ रिजर्व प्रणोदक हैं। यह पहली बार है जब हम पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से आगे जा रहे थे। हम अतिरिक्त ईंधन का उपयोग किए बगैर मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने में कामयाब रहे। इंसर्शन भी ठीक तरीके से हुआ, जिससे ईंधन बचाने में मदद मिली।
फिलहाल मंगलयान की कक्षा में कुछ सुधार किया जाएगा ताकि यह कई वर्षों तक काम करता रहे। यह इसलिए भी जरूरी है कि लंबे ग्रहण के दौरान भी मंगलयान को ऊर्जा मिलती रहे। कक्षा में सुधार नहीं किया गया तो यह निस्तेज हो सकता है क्योंकि लंबे ग्रहण के दौरान बैटरी इसका साथ छोड़ सकती है। कक्षा में सुधार होने से बैटरी पर ग्रहण का असर आधा रह जाएगा, जिससे सेटेलाइट कई वर्षों तक काम करता रह सकता है।
मंगलयान ने मंगल ग्रह पर ओलिंपिस मॉन्स नाम के वालामुखी की भी तस्वीर ली। यह वालामुखी हमारे सौरमंडल में मौजूद किसी भी पहाड़ से बहुत यादा बड़ा है। यह माउंट एवरेस्ट से ढाई गुना यादा ऊंचा है। मंगलयान ने जो तस्वीरें भेजी हैं उससे पता चलता है कि मंगल ग्रह पर बर्फ की चादर है। यह घटती-बढ़ती रहती है। इस बर्फ के चादर के अधिकतम क्षेत्रफल 9,52,700 किमी और न्यूनतम क्षेत्रफल 6,33,825 किमी है। मंगलयान ने मंगल ग्रह पर वैलेस मैरिनेरिस (मंगल की घाटी) की तस्वीरें भी लीं। ये घाटी मंगल ग्रह के इक्वेटर के नजदीक है।
मंगल पर मीथेन गैस की मौजूदगी का पता लगाने के लिए भेजा गया मंगलयान रिटायरमेंट के बाद भी कमाई कर रहा है। वैसे तो इसके छह माह ही काम करने की उमीद थी, लेकिन पांच साल बाद भी इसकी भेजी तस्वीरों को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा खरीद रहा है। इनके जरिए नासा मंगल पर मीथेन की मौजूदगी को लेकर जल्द किसी नतीजे पर पहुंच सकता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चेयरमैन डॉ. के. सिवन ने बताया कि करार के तहत नासा मंगलयान की तस्वीरें ले रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी इन तस्वीरों एवं आंकड़ों का इस्तेमाल शोध कार्य में कर रही हैं।
इसरो समेत कई महकमों के वैज्ञानिक मंगलयान के आंकड़ों पर शोधपत्र भी तैयार कर रहे हैं। नासा भी इसी आधार पर शोधपत्र तैयार कर सकता है। हाल ही में नासा ने चंद्रयान में लगे उपकरण की तस्वीरों के आधार पर चंद्रमा पर बर्फ होने का दावा किया था। चंद्रयान में नासा ने मून मिनरोलॉजी मैपर लगाया था जबकि मंगलयान में उसका कोई उपकरण नहीं है। मंगलयान में लगे सभी पांचों उपकरण इसरो के हैं जो सीधे हसन स्थित मुय नियंत्रण कक्ष से जुड़े हैं।
दरअसल, मंगलयान का मुय फोकस संभावित जीवन, ग्रह की उत्पत्ति, भौगोलिक संरचनाओं और जलवायु आदि पर रहा। मंगल की कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद मंगलयान ने इसके वायुमंडल, खनिजों और संरचना से जुड़ी तस्वीरें भेजी हैं।