April 16, 2024

कुँवारों की तादात में इजाफा

( आखरीआंख )
आज हरियाणा में 28 से 31 साल के कुंआरों की संया प्रचुर मात्रा में है। दुनिया के सारे दुख एक तरफ और पढ़-लिख कर नौकरी लगने के बावजूद विवाह न होना एक तरफ। आज बेटों के बाप की सबसे बड़ी चिन्ता है कि रिश्ते वाले ही नहीं आते। कुंआरे एक-दूसरे को तसल्ली देते हुए कहते मिल जायेंगे-क्या हुआ हम घोड़ी पर नहीं बैठे, पर बारातों में नाचे तो बहुत हैं। कोई कहेगा कि उसे लगता है कि करवा चौथ फिर आने वाला है, पर उसे व्रत रखने वाली नहीं मिल रही। कोई कहता है कि काश उसे भी कोई मिस काल मारने वाली मिल जाये तो बात बन जाये।
हरियाणा में कुंआरों को रांडा कहा जाता है। 30-32 साल के मलंग अगर कहते हैं कि आय एम सिंगल तो ब्याहा हुआ आदमी कहेगा-रै ईब तो मान जाओ खागड़ो, थम सिंगल नहीं, रांडे हो रांडे। 30 लाख रुपये का सालाना वेतन पाने वाले 35 साल की उम्र के एक लड़के की शादी नहीं हुई तो उसने किसी पंडित को अपनी जन्मपत्री दिखाई। उसकी जन्मपत्री देखकर पंडित बोला-जा को राखे साईयां मार सके न कोय।
आज बड़े बूढ़े भी अपने लाडलों के कुंआरेपन से परेशान हैं। उन्हें सपने भी इस बात के आते हैं कि कोई उनकी छाती पर पोते के ब्याह में थापे मार रहा है। दादियों-नानियों के सपनों में परियां नहीं, सिर्फ दुल्हनें आती हैं। छुट्टियों में एक दादा अपने पोते को समझाते हुए कहता है-साफ-सुथरे रह्या करो खागड़ो। ईब स्कूलां की छुट्टी हो री सैं, कोई मामे कै आवैगी, कोय बुआ कै। के बेरा थारा भी कोय सूत बैठ या।
किसी जमाने में दहेज लोभी मनमर्जी के रेट बोलते थे। समय ने करवट ली है और अब दुल्हनों के रेट फिक्स हो रहे हैं। एक मेरिज ब्यूरो के बाहर रेट लिस्ट टंगी थी—काची बहू-80,000, बिहारी नार-50,000, विधवा-40,000, दो बालकां की मां- 30,000 रुपये।
हिन्दुस्तान में जन्म लेने का एक फायदा यह है कि कोई किसी लायक हो या न हो पर वह शादी के लायक तो हो ही जाता है। शादीशुदा आदमी जब यह कहे कि वह सोचकर बतायेगा तो इसका सीधा मतलब है कि वह अपनी घरवाली से पूछ कर बतायेगा। पर जिनकी शादी नहीं हो रही, उनकी कसक को ब्रह्मा भी नहीं समझ सकता।
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