April 18, 2024

चीन के सीमा क्षेत्र संबंधी नये कानून को लेकर उसके विस्तारवादी रवैये के बारे में पड़ोसी देशों में चिंता व्याप्त है।
नये कानून से सबसे अधिक प्रभावित भारत और भूटान हो सकते हैं। चीन का दावा है कि उसने भारत को छोड़कर अन्य देशों के साथ अपने सीमा संबंधी विवादों को हल कर लिया है, हाल ही में उसने भूटान के साथ सीमा विवाद को हल करने के लिए एक रोडमैप संबंधी करार किया है। चीन का दावा है कि यह एक घरेलू कानून है, जिसके जरिए वह अपनी सीमा और सीमावर्ती क्षेत्रों का प्रबंधन करना चाहता है। चीन के नये कानून के संबंध में भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है। वास्तव में यह चीन को एक जवाब था।
अगस्त, 2019 में जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य के पुनर्गठन का फैसला किया था, उस समय चीन ने इसे एकतरफा और गैरकानूनी कार्रवाई बताया था। उस समय भारत ने कहा था कि यह उसका घरेलू मामला है। चीन ने भूमि सीमा संबंधी यह कानून उस समय बनाया है, जब पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के बीच सैन्य गतिरोध कायम है। राजनयिक और सैन्य स्तर पर वार्ताओं के अनेक दौर होने के बाद भी चीन के अडिय़ल रवैये के कारण गतिरोध कायम है। नये कानून से चीन के रवैये में और सख्ती आने की संभावना है। यही कारण है कि भारत के विदेश मंत्रालय ने चीन की हरकत पर कड़ा रुख अपनाया है, स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन के विस्तारवादी रवैये के बारे में संकेत किया था।
विदेश मंत्रालय ने चीन के नये कानून को एकतरफा करार देते हुए कहा है कि इससे चीन के सीमा संबंधी दावों को वैधता नहीं मिलने वाली। विदेश मंत्रालय ने विशेषकर पाक-अधिकृत जम्मू कश्मीर में पड़ोसी देश द्वारा चीन को अवैध रूप से भूभाग सौंपे जाने का उल्लेख किया है। भूमि सीमा संबंधी कानून के पहले चीन समुद्री सीमा क्षेत्र के बारे में कानून बना चुका है। इस कानून के जरिए उसने पूर्व और दक्षिण चीन सागर में अपने समुद्री सीमा क्षेत्र को मनमाने तरीके से बढ़ा दिया है। अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने चीन के दावों को गैरकानूनी बताया है, चीन न्यायाधिकरण के फैसले को मानने से इनकार करता है।
चीन ने अपने नये कानून के जरिए अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने की जिम्मेदारी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी पर सौंपी है। इससे चीनी सेना के विस्तारवादी रवैये को शह मिलेगी। राजनीतिक नेतृत्व द्वारा लचीलापन दिखाए जाने की गुंजाइश भी कम होगी। वास्तव में अपने सीमा क्षेत्र को लेकर भारत और चीन के राजनीतिक नेतृत्व और समाजों में बहुत अंतर है। चीन जहां अपने सीमा क्षेत्र और अपने मनमाने दावों को जीवन-मरण का सवाल मानता है, वहीं भारत में इसके प्रति उदासीनता रही है। यही कारण है कि कभी भारत और चीन के बीच बफर स्टेट रहा तिब्बत आज पूरी तरह चीन के शिकंजे में है। इसी तरह जम्मू कश्मीर के अक्साई चिन पर चीन के अवैध कब्जे के बारे में भारत ने कभी गंभीर रवैया नहीं अपनाया। वास्तविक नियंत्रण रेखा तक मौजूदगी दर्ज कराने के लिए भी अपनी आवश्यक सैन्य तैयारी नहीं की। इसी का परिणाम वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध में भारत की पराजय था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में पहले डोकलाम और बाद में पूर्व लद्दाख में भारत की ओर से दृढ़ता प्रदर्शित की गई। सीमा क्षेत्र में संपर्क सुविधाओं और आधारभूत ढांचे के विकास के कारण यह संभव हो सका। पूर्वी लद्दाख के घटनाक्रम से चीन को इस हकीकत का सामना करना पड़ा कि भारत को झुकाया और दबाया नहीं जा सकता।
चीन के नये कानून के बाद भारत-चीन वार्ताओं के संबंध में चीन का क्या रवैया रहेगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। अगर वास्तव में नया कानून केवल सीमा क्षेत्र के प्रबंधन तक ही सीमित है तो वार्ताओं में कुछ प्रगति की आशा की जा सकती है, इसके विपरीत यदि नया कानून विस्तारवादी मंशा से बनाया गया है, तो पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध लंबे समय तक जारी रह सकता है। इस बीच, ताइवान को लेकर चीन के इरादों के प्रति अमेरिका समेत पश्चिमी देशों में चिंता व्याप्त है। कुछ सुरक्षा विशेषज्ञ भविष्यवाणी कर रहे हैं कि अगले वर्ष चीन ताइवान को सैन्य शक्ति के जरिए हड़प सकता है। ताइवान की सुरक्षा को लेकर अमेरिकी प्रशासन पूर्व में आश्वस्त करता रहा है, लेकिन बाइडेन प्रशासन अपनी लुंज-पुंज और लचर नीतियों के कारण ताइवान की सुरक्षा के लिए किस सीमा तक अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहेगा, यह एक बड़ा सवाल है।