April 19, 2024

काँग्रेस की राज लीला में कन्हैया की ताल


ऐसे वक्त में जब तमाम चर्चित युवा चेहरे बारी-बारी कांग्रेस का साथ छोड़कर दूसरे दलों में अपना भविष्य तलाश रहे हैं, तब जेएनयू के छात्र संघ के जरिये राजनीति में प्रवेश करने वाले कन्हैया कुमार का सीपीआई छोड़कर कांग्रेस में प्रवेश करना चौंकाने वाला है। सुर्खियां बटोरने का हुनर जानने वाले कन्हैया के कांग्रेस में प्रवेश की सुर्खियां मंगलवार को दबकर रह गई जब पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिद्धू ने पद से त्यागपत्र दे दिया। जैसा कि अक्सर होता है एक बड़ी खबर दूसरे घटनाक्रम को सुर्खियों से बाहर कर देती है, कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने की खबर अपेक्षित सुर्खियां न बटोर सकी। कांग्रेस ने बकायदा इसके लिये शहीद भगत सिंह का जन्मदिन चुना था और खुद राहुल गांधी इस कार्यक्रम में शामिल हुए थे। कांग्रेस इसके जरिये संदेश देना चाह रही थी कि पार्टी से युवाओं का मोहभंग नहीं हो रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और सुष्मिता देव जैसे दिग्गज युवा नेता पार्टी छोड़कर भले ही चले गये, लेकिन कन्हैया कुमार जैसे युवा चेहरे पार्टी की ओर आकर्षित भी हो रहे हैं। इस कार्यक्रम में गुजरात के चर्चित विधायक जिग्नेश मेवाणी को भी पार्टी में शामिल किया गया।
एक विश्वविद्यालयी कैंपस छात्र नेता से राष्ट्रीय राजनीति में दस्तक देने वाले कन्हैया कुमार के सुर्खियों के सरताज बनने की कहानी कम चौंकाने वाली नहीं है। हमेशा से ही दिल्ली में होने वाला घटनाक्रम राष्ट्रीय मीडिया को शेष देश के मुकाबले ज्यादा नजर आता है। दिल्ली के जेएनयू में वाम छात्र संगठनों का दक्षिणपंथी संगठनों से जो टकराव हुआ, उसमें कन्हैया को मीडिया ने एक हीरो की तरह पेश किया। भाजपा के विरुद्ध मुखर रहने वाले मीडिया वर्ग ने इसे हाथों-हाथ लिया। निस्संदेह वे एक कुशल वक्ता हैं, शब्दों के चयन व भाषा को मुहावरेदार बनाना जानते हैं। यही वजह है कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को उनमें पार्टी की विचारधारा वाला भविष्य का नेता नजर आया। तभी सीपीआई ने कन्हैया को उनके गृह राज्य बिहार के बेगूसराय से वर्ष 2019 में लोकसभा सीट के लिये उम्मीदवार बनाया। लेकिन वे चुनाव चार लाख से अधिक वोटो के अंतर से हार गये। दरअसल, मीडिया हाइप ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर का नेता बना दिया। आमतौर पर वामदलों में नेता लंबी तपस्या से तपकर इस मुकाम तक आते हैं। सीपीआई की मदद से वे छात्र संघ का चुनाव जीते थे। उन्होंने एक कामरेड की तरह क्लास स्ट्रगल नहीं किया था। । जनता के बीच जो एक राजनीतिक व्यवहार होता है, लोगों के बीच एक उम्मीदवार का जो काम होता है वह उनके खाते में नहीं था। विश्वविद्यालय छात्र संघ के नेता  तो वे एक राष्ट्रीय राजनेता की तरह देखे जाने लगे। ठोस जमीन न होने की वजह से वे 2019 में बेगूसराय सीट से भाजपा के गिरिराज सिंह से चार लाख बीस हजार वोटों से हार गये थे।
कन्हैया का कांग्रेस में जाना सीपीआई के लिये एक बड़ा झटका कहा जा रहा है। कहीं न कहीं पार्टी कन्हैया के राजनीतिक कद, सोच और पार्टी की विचारधारा के लिये प्रतिबद्धता का आकलन नहीं कर पायी। जब मीडिया में उनके कांग्रेस में जाने की खबरें आने लगीं तो पार्टी ने इसे महज अफवाह माना। इस बाबत मीडिया को स्थिति स्पष्ट करने के लिये पार्टी ने कन्हैया को प्रेस कान्फ्रेंस में आने को कहा था। लेकिन सीपीआई के मुख्यालय में पार्टी के उनके साथी इंतजार करते रहे, लेकिन कन्हैया नहीं आये। बताते हैं उन्होंने फोन व मैसेज का भी जवाब नहीं दिया। सीपीआई के वरिष्ठ नेता अतुल अंजान ने कहा भी कि सीपीआई में विचारधारा महत्वपूर्ण है, । कांग्रेस में शामिल होने के बाबत उन्होंने पार्टी को अंधेरे में रखा। वे पिछले काफी समय से दूसरी पार्टी में संभावना तलाश रहे थे। पहले नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद उनके जेडीयू में जाने की चर्चा थी, अब वे कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं।
निस्संदेह, देश में वामपंथी राजनीतिक दल जनाधार की मुश्किल चुनौती से जूझ रहे हैं। ऐसे में पार्टी के महत्वाकांक्षी नौजवान राजनेताओं को फटाफट राजनीतिक ताकत बनने का सपना दूर नजर आता है, इसी कड़ी में कन्हैया कुमार का सीपीआई छोड़कर कांग्रेस में जाना भी देखा जा सकता है। वैसे तो ऐसी महत्वाकांक्षा पालना उनका अधिकार भी है। यही वजह है कि सीपीआई के नेताओं को इस बात का मलाल है कि पार्टी ने उन्हें राजनीतिक पारी में जंप दे दिया। पर्याप्त अनुभव के बिना नेशनल काउंसिल और राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य भी बना दिया। इसके बावजूद वे कुछ महत्वपूर्ण पद राज्य संगठन में चाहते थे, जिसके लिये पार्टी तैयार नहीं थी। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि उनके जाने से कैडर आधारित पार्टी को कोई नुकसान नहीं होने वाला।
बहरहाल, एक कुशल वक्ता व हवा का रुख भांपने वाले कन्हैया में कुछ तो खास है। राहुल गांधी की भी टिप्पणी थी कि बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो बीजेपी-आरएसएस से नहीं डरते, लेकिन कांग्रेस से बाहर हैं, उन्हें हम कांग्रेस में लाएंगे।