March 29, 2024

चला गया अभिनय-सम्राट, ट्रेजडी-किंग दिलीप कुमार

6 दशक तक हिंदी-सिनेमा और दर्शकों के दिलो पर राज करने वाले अभिनय-सम्राट, ट्रेजडी-किंग, अभिनय की यूनिवर्सिटी, वरिष्ठ और महान अभिनेता दिलीप कुमार आज सुबह 7-30 बजे अपने फैंस को और अपने चाहने वालो को 98 साल की आयु में हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए। लेकिन दिलीप कुमार के अभिनय से सजी उनकी नायाब फिल्में आज भी उनके फैंस और चाहने वालो के दिलो में बसी हुई हैं।
दिलीप कुमार का जन्म
दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 को पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था उनका वास्तविक नाम यूसुफ खान था उनके पिता का नाम गुलाम सरवर खान था और माता का नाम आएशा बेगम था उनके पिता फलो का धंधा करते थे दिलीप कुमार अपने पिता के साथ कारोबार में मदद किया करते थे, पिता से कुछ अनबन होने के बाद दिलीप कुमार पुणे आ गए और अंग्रेज़ी आने के चलते एक जगह नोकरी करने लगे, एक बार इत्तिफाक से दिलीप कुमार की मुलाकात डॉ- मसानी से हो गई और डॉ, मसानी ने उन्हें मुंबई आने का न्योता दिया, डॉ, मसानी ने दिलीप कुमार को उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री देविका रानी से मिलवाया, देविका रानी ने उन्हें 1250 रुपए महीने के वेतन पर अपनी कम्पनी में नोकरी दे दी, वही पर दिलीप कुमार की मुलाकात अभिनेता अशोक कुमार और डायरेक्टर शशधर मुखर्जी से हुई। दिलीप कुमार को देविका रानी ने ही दिलीप कुमार नाम दिया था और 1944 में देविका रानी ने उन्हें फि़ल्म ज्वार-भाटा के ज़रिए हिंदी सिनेमा जगत में पहला-ब्रेक दिया। ज्वार-भाटा ज्यादा चली नही और फ्लॉप हो गई।
दिलीप कुमार की पहली हिट फिल्म जुगनू थी जिसमे उनके साथ अभिनेत्री और गायिका नूरजहाँ थी फि़ल्म जुगनू ज़बरदस्त हिट फिल्म साबित हुई और दिलीप को इस फि़ल्म से सभी ने नोटिस किया। इसके बाद मेहबूब खान की फि़ल्म अंदाज़ में दिलीप कुमार को अभिनेता राजकपूर के साथ काम करने का मौका मिला। जिनमे उनके साथ नरगिस भी थी अंदाज़ ब्लॉकबस्टर फि़ल्म साबित हुई और इस फि़ल्म के बाद दिलीप कुमार ने हिन्दी सिनेमा जगत में ऐसी रफ्तार पकड़ी की कोई उनको छू भी नही पाया, अंदाज़ के बाद फि़ल्म मेला, दीदार, संगदिल, देवदास, फुटपाथ, आन और दाग जैसी सुपरहिट फिल्में आई जिसने दिलीप कुमार का सितारा बुलन्दियों पर पहुंचा दिया।
इसी दौरान दिलीप कुमार को गंभीर और प्यार में नाकाम आशिक के किरदार मिलने लगे, अपने किरदार में एक दम उतर कर उस किरदार को निभाने की दिलीप कुमार में जबरदस्त कला थी जिसकी वजह से उनके किरदार के निभाए हुए रोल का असर उनके स्वास्थ्य पर पडऩे लगा था डॉक्टरों के परामर्श पर दिलीप कुमार हल्की-फुल्की कॉमेडी और रोमांस से भरपूर फिल्में करने लगे, जिसमे कोहिनूर, आज़ाद, नया-दौर, पैगाम, और गंगा-जमुना प्रमुख फि़ल्म थी जिसमे दिलीप कुमार का अभिनय खुलकर बाहर आया और इन फिल्मों में दिलीप कुमार ने यादगार अभिनय किया।
दिलीप कुमार की कुछ यादगार फिल्में
दिलीप कुमार ने अपने 6 दशक से ज़्यादा लंबे फिल्मी करियर में सिर्फ 65 फिल्मों में अभिनय किया। मुगले-आज़म में निभाए हुए उनके किरदार शहजादा सलीम के य्यादगार किरदार को भला कौन भुला सकता हैं मुगले-आज़म भारतीय सिनेमा की एक आइकॉनिक और मील का पत्थर फि़ल्म साबित हुई जिसने कई रिकार्ड तोड़े और कई रिकार्ड अपने नाम किए।
उनके अभिनय से सजी कुछ यादगार फिल्में— जुगनू, अंदाज़, मेला, आन, दाग, देवदास, फुटपाथ, मधुमती, कोहिनूर, आज़ाद, नया-दौर, गंगा-जमुना, मुगले-आज़म, लीडर, राम-और श्याम, आदमी, पैगाम, यहूदी,दिल दिया दर्द लिया, क्रांति, विधाता, कर्मा, मशाल, और सौदागर प्रमुख फिल्में हैं जो दिलीप कुमार के फैन्स को आज भी पसंद आती हैं और इन फिल्मों ने दर्शकों के दिलो में गहरी छाप छोड़ी हैं।
दिलीप को अबतक मिले अवार्ड
दिलीप को फिल्मों में उनके यादग्गार अभिनय और योगदान के लिए ढेरो अवार्ड मिल चुके हैं। दिलीप को 8 बार बेस्ट-एक्टर का फि़ल्म-फेयर अवार्ड मिला हैं (1) दाग (2) देवदास (3) मधुमती (4) कोहिनूर  (5) नया-दौर (6) लीडर (7) राम-और श्याम (8) शक्ति जैसी फिल्मों में उनके शानदार अभिनय के लिए बेस्ट-एक्टर का फि़ल्म,फेयर अवार्ड दिया गया था, इसके अलावा भारत सरकार ने उन्हें पदम्-भूषण एवं पदम्-विभूषण सम्मान से नवाजा था। हिन्दी सिने जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार दादा साहब फाल्के अवार्ड भी दिलीप कुमार को दिया जा चुका हैं वही पाकिस्तान सरकार ने पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान निशाने-इम्तियाज़ से दिलीप कुमार को नवाज़ा था।
बेशक आज दिलीप कुमार हमारे बीच नही हैं लेकिन उनकी फिल्मों में किए गए यादगार अभिनय के ज़रिए वो हमारे दिलों में हमेशा बसे रहेंगे, और उनकी फिल्मों के निभाए मज़ेदार किरदार हमे गुदगुदाते रहेंगे।
पेशावर का युसुफ जो बन गया बॉलीवुड का ट्रेजेडी किंग
11 दिसंबर, 1922 को ब्रिटिश इंडिया के पेशावर (अब पाकिस्तान में)  में जन्मे में दिलीप कुमार का असली नाम मोहम्मद युसुफ खान था. युसुफ खान ने अपनी पढ़ाई नासिक में की थी, राज कपूर उनके बचपन में ही दोस्त बन गए थे. मानो वहीं से दिलीप कुमार का सफर बॉलीवुड में शुरू हो गया था. करीब 22 साल की उम्र में ही दिलीप कुमार को पहली फिल्म मिल गई थी. 1944 में उन्होंने फिल्म ‘ज्वार भाटाÓ में काम किया था, लेकिन उनकी इस फिल्म की अधिक चर्चा नहीं हो पाई थी.
पुश्तैनी हवेली को म्यूजियम बनते देखना चाहते थे, दिलीप कुमार* मगरअफसोस ख्वाहिश अधूरी ही रह गई…
दिलीप कुमार का 100 साल से भी ज्यादा पुराना पुश्तैनी घर पाकिस्तान प्रांत के ख्वानी बाजार क्षेत्र में स्थित है।  मगर पाकिस्तान सरकार और मौजूदा मालिक के बीच में उलझा रह गया मामला…
साल 2014 में नवाज शरीफ सरकार के समय उनके घर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया था। अपने पुश्तैनी घर से दिलीप कुमार की ढेर सारी यादें जुड़ी थीं,जिसका जिक्र उन्होंने अपने आत्मकथा द सबस्टांस एंड द शैडो में किया था।! आज अंतिम सांस के साथ ही यह ख्वाहिश भी मन में दबी रह गई!!
आप सा कोई नहीं..
फिल्मी दुनिया में ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार सा कोई दूसरा फनकार नहीं हुआ। चेहरे की भंगिमा,आवाज में दर्द और ऑखों से सब कुछ कह जाने की जो कला दिलीप साहब में रही ,वैसा दूसरे फनकारों में देखने को कम मिलता है। सारी जिन्दगी वो ट्रेजिडी किंग बने रहे और उनका जाना भी भारतीय फिल्मी दुनिया के लिए एक ट्रेजिडी ही है।
उनके बारे में किस्सों की लम्बी सूची है। ऐसा अद्भुत कलाकर शायद ही अब कभी फिल्मी दुनिया को मिले। हर कलाकार को जनता एक नाम देती है। दिलीप को ट्रेजिडी किंग उनके अभिनय क्षमता के आधार पर जनता से  मिला। इस फनकार का फिल्मी सफर भी ट्रेजिडी से कम नहीं था।
दिलीप साहब का बॉलीवुड करियर फिल्म ज्वार भाटा1944 से शुरू हुआ था। 1947 में उन्होंने जुगनू में काम किया। इस फिल्म की कामयाबी ने दिलीप को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। इसके बाद लगातार वो कमायाब फिल्में देते गए।
शहीद, अंदाज, दाग, दीदार, मधुमति, देवदास, मुसाफिर,नया दौर, आन, आजाद, जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया। अपने अभिनय से दो दशकों में लाखों युवा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गए थे।
दिलीप साहब ट्रेजेडी किंग के साथ ही सभी भूमिकाएं करने में माहिर थे। राम और श्याम,मुगले आजम का सलीम और पिता की जबरदस्त भूमिका निभाई शक्ति फि़ल्म में। 25 साल की उम्र में वे देश के नंबर वन एक्टर के रूप में स्थापित हो गए थे। राजकपूर और देव आनंद के आने से दलीप,राज,देव की फेमस जोडिय़ों को लोगों ने दिल से सराहा।
दिलीप कुमार बॉम्बे टॉकीज की देन हैं। जहां देविका रानी ने उन्हें काम और नाम दिया। यहीं वे यूसुफ सरवर खान से दिलीप कुमार बने और यहीं उन्होंने अभिनय की बारीकियां सीखीं। पहली फिल्म ज्वार भाटा के लिए उन्हें 1250 रुपए मिले थे। उस वक्त उनकी उम्र 22 साल थी। सबसे अधिक पुरस्कार भी दिलीप के हिस्से में आए। दस बार फिल्म फेयर अवार्ड जीते। नया दौर के देवदास थे दिलीप कुमार। तभी तो दुनिया उन्हें कहती है सारे शहर में आप सा कोई नहीं।