April 20, 2024

बर्ड लू के मामले में काफी सुरक्षित है उत्तराखण्ड

देहरादून। पूरे देश में भले ही लगातार बर्ड लू के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड अब तक इससे पूरी तरह अछूता है। राय में इस साल अब तक एक भी मामला सामने नहीं आया है। इससे पहले भी यह बीमारी बहुत यादा नहीं फैली। यही कारण है कि वर्ष 2006 से आज तक कभी भी पक्षियों को कलिंग (बेहोश कर दफनाने) की नौबत नहीं आई। इससे यह भी माना जा सकता है कि अन्य रायों की तुलना में उत्तराखंड काफी सुरक्षित है।
इन दिनों पूरे देश में बर्ड लू का खतरा है। बर्ड लू का कोई उपचार भी नहीं है। इसलिए संक्रमित पक्षियों को बेहोश कर दफनाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया को कलिंग कहा जाता है। दुनिया के हर हिस्से में संक्रमित पक्षियों को खत्म करने और इंफेक्शन की चेन तोडऩे के लिए कलिंग का सहारा लिया जाता है। मामले बढऩे पर हर राय में फॉर्म के फॉर्म कलिंग कराते हैं। पोलट्री फॉर्म की सभी मुर्गियों को बेहोश करने के बाद बड़ा गड्ढ़ा खोदकर दफना दिया जाता है। उत्तराखंड में आज तक इसकी नौबत नहीं आई।
2006 में पहली बार बर्डलू के मामलों में बहुत उछाल आया था, जब पूरी भारत में इस बीमारी का नाम सुना गया। बड़े पैमाने पर पक्षियों (विशेषकर मुर्गियों की) कलिंग की गई। बर्ड लू पक्षियों से आदमियों में फैल सकता है। यही कारण है कि इसके इक्का-दुक्का मामले सामने आने के साथ एहतियातन उपाय भी किए जाते हैं।
उत्तराखंड आनेवाले प्रवासी पक्षियों से बर्ड लू के फैलने का खतरा यादा रहता है। राजधानी दून में आसन वेटलैंड, चीला बैराज में वन विभाग और पशुपालन की टीमें लगातार निरीक्षण कर रही हैं। किसी भी जगह अभी बहुत यादा मामले सामने नहीं आए हैं। एक-दो कौए या अन्य पक्षियों के मरने की जानकारी सामने आ रही है। इनके सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। दूसरे रायों से पक्षियां लाने पर रोक लगा दी गई है। जिले में कई बड़े पोलट्री फार्म हैं, जिनके पास 35 से 40 हजार तक मुर्गियां हैं। उपचार के रूप में टेमी लू का विकल्प दिया गया है। हालांकि यह बहुत यादा प्रभावी नहीं है। इसलिए बीमारी को रोकने पर फोकस किया जाता है।
मुय पशुचिकित्साधिकारी एस बी पाण्डे का कहना है कि पक्षियों की असामान्य मौत होने पर विशेषज्ञ टीम उनकी जांच कर सैंपल भोपाल लैब भेजते हैं। रिपोर्ट में बर्डलू की पुष्टि होने के बाद पूरे फॉर्म की कलिंग करनी होती है। इससे बीमारी के फैलने का खतरा कम हो जाता है। उत्तराखंड के लिहाज से अछा यह रहा कि कभी कलिंग नहीं करनी पड़ी। बीमारी के दौरान चिकन व अंडों की बिक्री पर असर जरूर पड़ा।